शनिवार

समाजीकरण में संचार की भूमिका (Role of Communication in Socialization)


        मानव की सामाजिक व सांस्कृतिक परम्पराओं के स्थानांतरण की प्रक्रिया को सामाजीकरण कहते हैं। यह स्थानांतरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक होता है, जिसमें संचार की भूमिका महत्वपूर्ण होती हैं। सामाजिक निरंतरता को बनाए तथा बचाए रखने के लिए संचार के विविध विधाओं का होना अनिवार्य है। इसकी अनिवार्यता का अनुमान बड़े ही आसानी से लगाया जा सकता है, क्योंकि समाजीकरण की प्रत्येक क्रिया संचार पर ही निर्भर हैं। उदाहरणार्थ, मानव संचार की मदद से जैसे-जैसे सांस्कृतिक अभिवृत्तियों, मूल्यों और व्यवहारों को आत्मसात करता जाता है, वैसे-वैसे जैविकीय प्राणी से सामाजिक प्राणी बनता जाता है। इस प्रकार, संचार तथा सामाजिक जीवन के बीच काफी गहरा सम्बन्ध परिलक्षित होता है। सामाजिक सम्बन्धों के लिए पारस्परिक जागरूकता का होना जरूरी है। पानी-गिलास, कलम-दवात, पंखा-बिजली के बीच सम्बन्ध होता है, लेकिन उसे सामाजिक सम्बन्ध नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि इनके बीच मानसिक जागरूकता का अभाव होता है। अत: मानसिक जागरूकता के अभाव में सामाजिक सम्बन्धों का निर्माण संभव नहीं है। वर्तमान समाज में संचार ने एक महत्वपूर्ण सामाजिक भूमिका को अधिग्रहित कर लिया है। विशेषज्ञों का दावा है कि संचार के विविध माध्यमों की तीन महत्वपूर्ण सामाजिक प्रक्रियाएं हैं- समाजीकरण, सामाजिक परिवर्तन और सामाजिक नियंत्रण। संचार समाजीकरण का प्रमुख माध्यम हैं। 

        आज से करीब पांच लाख साल पूर्व कन्दराओं में रहने वाले (आदि) मानव ने अपनी ध्वनि तथा वाक्शक्ति के आधार पर मौखिक संचार की जिस सतत् सकारात्मक परम्परा की शुरूआत की, वह वर्तमान में भी जारी हैं। सभ्यता के प्रारंभ में मानव के पास केवल आवाज थी, तब परिवार (प्राथमिक समूह) द्वारा मौखिक संचार के रूप में समाजीकरण का कार्य किया जाता था। इस संदर्भ में समाजशास्त्री जेल्डिच ने अध्ययन किया, जिसका विषय था- ट्टसमाजीकरण में माता-पिता की भूमिकाट्ट । अपने अध्ययन के दौरान उन्होंने पाया कि सभी समाजों में पिता- साधक नेतृत्व (Instrumental Leadership) तथा माता- भावनात्मक नेतृत्व (Expressive Leadership) प्रदान करते हैं। सभ्यता के विकास के साथ-साथ समाजीकरण के अभिकरणों का भी विकास हुआ। परिणामत: परिवार के साथ-साथ क्रीड़ा समूह, पास-पड़ोस, नातेदार तथा विवाह जैसी संस्थाएं भी समाजीकरण का कार्य करने लगी।

         कालांतर में लिपि का आविष्कार होने से शिक्षण संस्थाए (Educational Institutions) भी समाजीकरण के अभिकरण (साधन) बन गये। हालांकि इससे प्राथमिक समूह की भूमिका में किसी प्रकार की कमी तो नहीं आयी, लेकिन लोगों को सार्वजनिक रूप से समाजीकरण के क्षेत्र में शिक्षण संस्थाओं की भागीदारी को स्वीाकर करना पड़ा। तब शिक्षण संस्थाओं में हस्तलिखित पोथियों का उपयोग किया जाता था। तत्कालीक मानव के लिए सीमित संख्या वाली ये पोथियां अद्भूत वस्तुएं थी, जिनके आदर में लोगों का शीश सदैव झुका रहता था। इन पोथियों को लिखित संचार का प्रारंभिक माध्यम कहा जाता है। मुद्रण के आविष्कार व विकास के बाद पोथियां की जगह को पुस्तकों ने अधिग्रहित कर लिया, जिससे लिखित संचार माध्यम को विस्तार मिला। तब समाज में प्राथमिक समूह के साथ-साथ शिक्षण संस्थानों व पुस्तकों के माध्यम से भी समाजीकरण होने लगा। तत्कालीन समाज में मुद्रण तकनीकी आश्चर्यजनक संचार माध्यम के रूप में उभरा। इसके बाद समाज का जैसे-जैसे विकास होता गया, वैसे-वैसे संचार के माध्यमों का भी। परिणामत: समाचार पत्र, पत्रिकाएं, रेडियो, सिनेमा, टेलीविजन, कम्प्यूटर, इंटरनेट, टेलीफोन, मोबाइल इत्यादि संचारमाध्यम समाजीकरण के कार्य में जुटे है। समाज में संचार माध्यमों की बहुलता के कारण लोगों के पास एक ही संदेश कई माध्यमों से आने लगे हैं, जिससे संदेशों के पुष्टिकरण की समस्या का भी काफी हद तक समाधान हो गया है। भारतीय समाजशास्त्री श्यामा चरण दूबे के अनुसार- मानव जैविकीय प्राणी से सामाजिक प्राणी तब बनता है, जब वह संचार के माध्यम से सांस्कृतिक अभिवृत्तियों, मूूल्यों और व्यवहारजन्य प्रतिमानों को आत्मसात कर लेता है। इनका दावा है कि सांस्कृतिक निरंतरता को संचार माध्यमों पर आधारित सामाजिक प्रक्रिया है। व्यक्ति, समाज व मूल्यों के बीच परस्पर आदान-प्रदान से सम्बन्ध स्थापित होता है, जिससे सांस्कृतिक निरंतरता को गति मिलती है। इस प्रक्रिया में संचार माध्यम महत्वपूूर्ण भूमिका निभाते है।

मानव में बुद्धि, तर्क, भाषा, अभिव्यक्ति, संस्कृति इत्यादि के रूप में कई नैसर्गिक गुणों का समावेश होता है। जिनकी मदद से वह भौतिक माध्यमों द्वारा सम्प्रेषित संदेशों का मूल्यांकन करता है। संचार की विभिन्न विधाएं समाजीकरण के साथ-साथ सामाजिक निरंतरता को बनाये रखने का कार्य करती हैं। सामाजिक विचारक विलियम्स के अनुसार- नई सूचना प्रौद्योगिकी के कारण एक नई भौतिक संस्कृति विकसित हुई है। साथ ही सामाजिक आविष्कारों के रूप में संचार माध्यमों का सामाजीकरण व सामाजिक परिवर्तन में महत्वपूर्ण योगदान है। भौतिक आविष्कारों ने मानव जीवन को प्रभावित किया है। इसका उदाहरण है- मताधिकार का प्रयोग, स्त्री शिक्षा का प्रसार, बंधुआ मजदूरी की समाप्ति, अन्धविश्वासों तथा कुरीतियों का उन्मूलन, जिसे प्रतिस्थापित करने में संचार माध्यमों की सबसे अहम भूमिका रही हैं। उपरोक्त सामाजिक बुराईयों के समूलनाश के लिए सबसे पहले संचार माध्यमों ने ही जन-जागरण अभियान प्रारंभ किया। इससे नये सामाजिक मूल्यों की प्रतिस्थापना हुई, जो सामाजिक परिवर्तन और समाजीकरण के कारण बनें।  

निष्कर्ष
       सामाजीकरण का मूल आधार संचार ही है। मानव-शिशु संसार में पशु की आवश्यकताओं से युक्त एक जैविकीय प्राणी के रूप में जन्म लेता है तथा समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा सामाजिक प्राणी बनता है। इस प्रक्रिया के बिना न तो समाज जीवित रह सकता है, न तो संस्कृति बच सकती है और न तो सामाजिक मनुष्य का निर्माण हो सकता है। समाजीकरण की प्रक्रिया में संचार माध्यमों की भूूमिका महत्वपूर्ण होती है। आधुनिक संचार माध्यमों के विकास के साथ-साथ समाजीकरण की प्रक्रिया में भी बदलती रहती है। इन परिवर्तनों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि संचार माध्यमों के सामाजिक दायित्वों की जहां बढ़ोत्तरी हुई है, वहीं आधुनिक समाज भी संचार माध्यमों पर ही पूरी तरह से आश्रित हो गया है। प्रारंभ में जब संचार माध्यमों का विकास नहीं हुआ था, तब समाजीकरण का एक माध्यम साधन मौखिक संचार था, जिसमें परिवार नामक प्राथमिक समूह के सदस्य भाग लेते थे। यह प्रक्रिया काफी सीमित थी। मुद्रण तकनीकी के विकास से लोगों को पुस्तकों की सुविधा मिली, जिसके कारण ज्ञान के क्षेत्र विस्तृत हुआ। समाचार पत्र, पत्रिका रेडियो, टेलीविजन, मोबाइल, इंटरनेट इत्यादि इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के आगमन से सीखने की प्रक्रिया में ढेरों सूचना संदेश उपलब्ध हो सके। 

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