शनिवार

समाजीकरण (Socialization)


बालक में जन्म के समय किसी भी मानव समाज का सदस्य बनने की योङ्गयता नहीं होती हैं। वह एक जैविकीयप्राणी के रूप में संसार में आता है तथा रक्त, मांस व हड्डियों का एक जीवित पुतला होता है। उसमें अंदर किसी प्रकार के सामाजिक गुणों का समावेश नहीं होता है। वह न तो सामाजिक होता है... न तो असामाजिक... और न तो समाज विरोधी...। समाज के रीति-रिवाजों, प्रथाओं, मूल्यों एवं संस्कृतियों से भी अनजान होता है। वह नहीं जानता है कि उसे किसके प्रति कैसा व्यवहार करना चाहिए तथा समाज के लोग उससे कैसी अपेक्षा रखता है। बालक कुछ शारीरिक क्षमताओं के साथ पैदा होता है। इन क्षमताओं के कारण ही बहुत कुछ सीख लेता है तथा समाज का क्रियाशील सदस्य बन जाता है। सामाजिक सम्पर्क के कारण सीखने की क्षमता व्यावहारिक रूप धारण करती है। उदाहरणार्थ, मानव में भाषा का प्रयोग करने की क्षमता होती है, जो समाज के सम्पर्क में आने से ही व्यावहारिक रूप ग्रहण करती है। सामाजिक सम्पर्क के कारण ही मानव समाज के रीति-रिवाजों, प्रथाओं, मूल्यों, विश्वासों, संस्कृतियों एवं सामाजिक गुणों को सीखता है और एक सामाजिक प्राणी होने का दर्जा प्राप्त करता है। सामाजिक सीख की इस प्रक्रिया को ही समाजीकरण कहते हैं। 

समाजीकरण का अर्थ एवं परिभाषा
(Meaning and Definition of Socialization)
समाजीकरण वह प्रविधि है, जिसके द्वारा संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित किया जाता है। इसके माध्यम से मानव अपने समूह एवं समाज के मूल्यों, रीति-रिवाजों, लोकाचारों, आदर्शो एवं सामाजिक उद्देश्यों को सीखता है। दूसरे शब्दों में समाजीकरण एक प्रक्रिया है,  जिसके द्वारा मानव को सामाजिक -सांस्कृतिक संसार से परिचित कराया जाता है। इस संदर्भ में समाजीकरण की कुछ प्रचलित परिभाषाएं निम्रलिखित हैं :- 

  • ए. डब्ल्यू. ग्रीन के अनुसार- समाजीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा बच्चा सांस्कृतिक विशेषताओं, आत्मपन और व्यक्तिव को प्राप्त करता है।
  • गिलिन और गिलिन के अनुसार- समाजीकरण से हमारा तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा व्यक्ति, समूह में एक क्रियाशील सदस्य बनता है, समूह की कार्यविधियों में समन्वय स्थापित करता है, उसकी परम्पराओं को ध्यान रखता है और सामाजिक परिस्थितियों से अनुकूलन करके अपने साथियों के प्रति सहनशक्ति की भावना विकसित करता है।
  • किम्बाल यंग के अनुसार- समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रवेश करता तथा समाज के विभिन्न समूहों का सदस्य बनता है और जिसके द्वारा उसे समाज के मूल्यों और मानकों को स्वीकार करने की प्रेरणा मिलती है। 
  • एच.एम. जॉनसन के अनुसार- समाजीकरण सीखने की वह प्रक्रिया है जो सीखने वाले को सामाजिक भूमिकाओं का निर्वाह करने योङ्गय बनाती है।
  • न्यूमेयर के अनुसार- एक व्यक्ति के सामाजिक प्राणी के रूप में परिवर्तित होने की प्रक्रिया का नाम समाजीकरण है।
        उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि- समाजीकरण सीखने की एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मानव अपने समूह अथवा समाज की सामाजिक-सांस्कृतिक विशेषताओं को ग्रहण करके अपने व्यक्तित्व का विकास करता है और समाज का क्रियाशील सदस्य बनता है। समाजीकरण द्वारा बच्चा सामाजिक प्रतिमानों को सीखकर उनके अनुरूप आरण करता है, इससे समाज में नियंत्रण बना रहता है।
स्वीवर्ट एवं ङ्गिलन ने समाजीकरण के तीन तत्वों को आवश्यक बतलाया हैं। पहला- अंत:क्रिया, दूसरा-भावनात्मक स्वीकृति और तीसरा- संचार व भाषा। दूसरे व्यक्तियों के साथ अंत:क्रिया के दौरान मानव सही व्यवहार करना सीखता है। वह यह भी सीखता है कि किस प्रकार के व्यवहारों को समाज द्वारा स्वीकृत प्राप्त है और किस प्रकार के व्यवहार प्रतिबंधित हैं। इस दौरान वह अपने अधिकारों, दायित्वों तथा कर्तव्यों को भी सीखता है। सीखने का कार्य संचार व भाषा द्वारा सरलता से किया जाता है। चूंकि मानव एक भावनात्मक और बौद्धिक प्राणी होता है, अत: वह प्रेम पाने व प्रेम प्रदान करने का अनुभव भी प्राप्त करता है। भावनात्मक वातावरण में समाजीकरण शीघ्र होता है। इस प्रकार समाजीकरण के लिए उक्त तीनों तत्वों की आवश्यकता होती है।

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